यूँ हक़-ए-दोस्ती अदा कीजे मेरी तन्हाई पर हँसा कीजे अब वो मौसम कभी न आएगा सब्ज़ पत्तों को मत तका कीजे आप के ख़्वाब जब परेशाँ हों मेरी नींदें चुरा लिया कीजे साथ छूटे तो उम्र भर हो मलाल इतनी शिद्दत से मत मिला कीजे जलते रहिए किसी चराग़ के साथ शाम-ए-तन्हाई और किया कीजे