दामन-ए-हस्ती में पत्थर भर लिए हम ने कुछ कार-ए-नुमायाँ कर लिए खो गए नज़दीकियों के फेर में दूरियों के मरहले तय कर लिए जीने वालों को सलीक़ा आ गया ज़िंदगी की दिलकशी पर मर लिए हो गए उतना ही मक़्बूल-ए-जहाँ जिस क़दर इल्ज़ाम अपने सर लिए हौसला-मंदी नहीं तो कुछ नहीं वलवले हों लाख बाल-ओ-पर लिए बे-कसी इंसाफ़ को रोती रही जुर्म-ए-ना-कर्दा-गुनाही सर लिए चोट फूलों की भी कुछ कम तो नहीं संग-दिल बैठे हैं क्यों पत्थर लिए तंगी-ए-दामाँ हमें रह रह गई सब ने अपने अपने दामन भर लिए दर-ब-दर फिरते हैं किस उम्मीद पर अहल-ए-दिल एहसास के गौहर लिए खोई खोई ज़िंदगी है और हम दिल में इक तस्वीर-ए-बे-पैकर लिए मुंतज़िर हैं अपनों की बाहें 'रिशी' आस्तीनों में छुपे ख़ंजर लिए