आह दिल पर असर न हो जाए हुस्न की आँख तर न हो जाए दाग़-ए-दिल की तराक़्क़ियाँ तौबा ये सितारा क़मर न हो जाए आशियाँ तो बना रहा हूँ मगर बिजलियों को ख़बर न हो जाए डर है गुलशन का आशियाँ का नहीं नज़्र-ए-बर्क़-ओ-शरर न हो जाए राज़-ए-दिल इस लिए नहीं कहता इश्क़ ना-मो'तबर न हो जाए दिल से उन को भुला तो दूँ लेकिन ज़िंदगी तल्ख़-तर न हो जाए आते आते क़रीब मंज़िल के बद-गुमाँ राहबर न हो जाए शाम ऐसी नहीं कोई 'अख़्तर' जिस की पैदा सहर न हो जाए