अगर हिम्मत जवाँ हो शादमानी ढूँड लेती है ज़रूरत तपते सहरा में भी पानी ढूँड लेती है किसी रंगीन मंज़र तक रसाई जब नहीं होती नज़र अफ़्सुर्दा मंज़र में जवानी ढूँड लेती है हदों से बढ़ने लगती है घुटन जब दीदा-ओ-दिल की तरीक़ा गुफ़्तुगू का बे-ज़बानी ढूँड लेती है नुमाइश दिल के ज़ख़्मों की चलो दिल्ली में करते हैं सुना है क़ातिलों को राजधानी ढूँड लेती है मसाइल का कभी हल ढूँडने पर भी नहीं मिलता मसाइल का कभी हल ज़िंदगानी ढूँड लेती है किसी को क़िस्सा-ए-दिल जब सुनाना चाहता हूँ मैं बहाने बे-रुख़ी के बद-गुमानी ढूँड लेती है कोई उफ़्ताद जब भी टूटती है ज़िंदगानी पर मुझी को क्यों बरा-ए-नौहा-ख़्वानी ढूँड लेती है हक़ीक़त से अगर रिश्ता हो उस का तो 'कमाल-अनवर' ख़ुद अपने पढ़ने वालों को कहानी ढूँड लेती है