आह-ओ-नाला है अश्क-बारी है हिज्र में शक्ल ये हमारी है सुब्ह-ए-वस्ल अब नसीब हो कि न हो हिज्र की रात हम पे भारी है मर-मिटे हम तो तुम पे और तुम्हें आज तक हम से पर्दा-दारी है तेरी शमशीर-ए-हिज्र का क़ातिल दिल-ए-आशिक़ पे ज़ख़्म-ए-कारी है उन की जानिब से है ग़ुरूर-ए-सितम मेरी जानिब से इंकिसारी है हैं जो सरशार-ए-बादा-ए-उल्फ़त उन की अज़्मत भी होशियारी है क़त्ल-ए-उश्शाक़ के लिए क़ातिल निगह-ए-नाज़ की कटारी है बोसा अपनी जबीं का दें वो हमें ऐसी क़िस्मत कहाँ हमारी है शाम से हिज्र-ए-यार में ता-सुब्ह हम ने रो रो के शब गुज़ारी है बे-हिजाबी है तेरी दुश्मन से और आशिक़ से पर्दा-दारी है आप के हुस्न की मलाहत से पानी चाह-ए-ज़क़न का खारी है ख़त-ए-रुख़्सार-ए-यार ऐ 'साबिर' बाग़-ए-जन्नत की सब्ज़ क्यारी है