आह-ए-बीमार कारगर न हुई चर्ख़ काँपा मगर सहर न हुई सुब्ह-ए-महशर हुई शब-ए-तारीक सूरत-ए-यार जल्वा-गर न हुई शब-ए-उम्मीद कट गई लेकिन ज़िंदगी अपनी मुख़्तसर न हुई दूर से आज उन को देख लिया दिल को तस्कीं हुई मगर न हुई आँखों आँखों में ले लिया वा'दा कानों-कान एक को ख़बर न हुई उफ़ री चश्म-ए-इताब उफ़ रे जलाल बर्क़-ए-सोज़ाँ हुई नज़र न हुई फ़िक्र-ए-अंजाम-ओ-हसरत-ए-आग़ाज़ दो-घड़ी चैन से बसर न हुई खुलने वाला नहीं दर-ए-तौबा फ़िक्र-ए-अंजाम वक़्त पर न हुई ऐसा रोना भी कोई रोना है आस्तीन आँसुओं से तर न हुई हट के बालीं से लोग रोते हैं जैसे बीमार को ख़बर न हुई लुट गया सारा कारवाँ अदम एक को एक की ख़बर न हुई नीम-जाँ छोड़ कर चला क़ातिल निगह-ए-'यास' कारगर न हुई