आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना ख़ूब आई बहार क्या कहना मेहंदी मल कर है चोट मर्जां पर हाथ लाला-निगार क्या कहना मुझ से आशिक़ के और यूँ नफ़रीं वाह शाबाश यार क्या कहना बर्क़ भी दरकिनार रह जाए हाँ दिल-ए-बे-क़रार क्या कहना लाख बार इम्तिहान-ए-इश्क़ किया न कहा एक बार क्या कहना बहस-ए-गिर्या में अब्र बोल गया दीदा-ए-अश्क-बार क्या कहना मैं तो रोता हूँ आप हँसते हैं यही होता है यार क्या कहना सख़्ती-ए-इश्क़ झेल ले ऐ दिल वाह रे बुर्दबार क्या कहना मर गए हम मगर न रहम आया वही तेवर हैं यार क्या कहना ख़ार ख़ार-ए-ग़म-ए-दिल-ए-पुर-दर्द चीख़ कर ऐ हज़ार क्या कहना कह तो ललकार लें रक़ीबों को बात रख ली निगार क्या कहना जोश-ए-उल्फ़त में और ज़ब्त ऐ दिल जब्र पर इख़्तियार क्या कहना यूँ तो जो गुल है ख़ूब है लेकिन तेरा ऐ गुल-एज़ार क्या कहना ऐ 'सबा' दावा-ए-अनल-हक़ है ख़ूब सोचे हो यार क्या कहना