आई होगी किसी को हिज्र में मौत मुझ को तो नींद भी नहीं आती ‘आक़िबत में बशर से है ये सिवा जानवर को हँसी नहीं आती हाल वो पूछते हैं मैं हूँ ख़मोश क्या कहूँ शा'इरी नहीं आती हम-नशीं बिक के अपना सर न फिरा रंज में हूँ हँसी नहीं आती 'इश्क़ को दिल में दे जगह 'अकबर' 'इल्म से शा'इरी नहीं आती