आइना दिल का जब भी साफ़ हुआ इक हक़ीक़त का इंकिशाफ़ हुआ दिल मिरा ख़ून हो गया लेकिन पत्थरों में कहाँ शिगाफ़ हुआ दायरा बढ़ते बढ़ते टूट गया एक नुक़्ते पे इख़्तिलाफ़ हुआ मैं तो हक़ की तलाश में निकला क्यों ज़माना मिरे ख़िलाफ़ हुआ गर्दिशों में भँवर के जब उतरा फिर समुंदर का ए'तिराफ़ हुआ