आसमाँ से गिरा दिया मुझ को इस तकब्बुर ने क्या दिया मुझ को कितना गुमराह हो गया था मैं उस ने ख़ुद से मिला दिया मुझ को मैं किसी तरह मुतमइन न हुआ ख़्वाहिशों ने जला दिया मुझ को यूँही सम्त-ए-सफ़र नहीं मिलती मरहलों ने जता दिया मुझ को उस ने बस इक नज़र ही डाली थी और पत्थर बना दिया मुझ को