आईने में इक आईना कुछ उजला कुछ धुँदला सा मेरे आगे मेरा सरापा कुछ उजला कुछ धुँदला सा शर्त तो ये थी सारे मुंसिफ़ सच के अलावा कुछ न लिखें लेकिन सब ने ख़ुद को सोचा कुछ उजला कुछ धुँदला सा जब भी ख़ुद को छू कर देखा रेत की इक दीवार लगा जब भी समझा ख़ुद को समझा कुछ उजला कुछ धुँदला सा बारिश जब मन जीत न पाई दरिया से यारी कर ली लम्हा लम्हा भीगा भीगा कुछ उजला कुछ धुँदला सा एक पिघलते दिन का साया एक सुलगती रात का अक्स किस ने देखा जो अंदर था कुछ उजला कुछ धुँदला सा इस दुनिया से कुछ न माँगा इस दुनिया को कुछ न दिया रहा हाथ में अपना चेहरा कुछ उजला कुछ धुँदला सा लहरें तो आई थीं लेकिन साहिल छू कर लौट गईं दूर कोई साया लहराया कुछ उजला कुछ धुँदला सा जाने कैसे शोर ने मुझ को बे-आवाज़ किया 'पर्वाज़' हाथों में है अब सन्नाटा कुछ उजला कुछ धुँदला सा