ये कहा उस ने मिरे शौक़ के अफ़्साने पर बे-अदब शम्अ' कहीं गिरती है परवाने पर आन दिल्वाते हो रख रख के जो परवाने पर चोट आए न कहीं ज़ब्त के पैमाने पर उन से कह दे कोई वो आ के तमाशा देखें फूल बरसाते हैं लोग आप के दीवाने पर मुड़ के रहमत की तरफ़ की जो नज़र मस्तों ने आ गया अब्र-ए-सियह झूम के मय-ख़ाने पर याद टूटा हुआ दिल आ गया पहरों रोए पड़ गई आँख जो टूटे हुए पैमाने पर खिंच गई सुब्ह-ए-क़यामत की मुजस्सम तस्वीर आ गया ढल के दुपट्टा जो कभी शाने पर याद आया कोई नाकाम-ए-तमन्ना 'मुज़्तर' रो दिए आज वो क्यों क़ैस के अफ़्साने पर