आज भी सोचा बहुत By Ghazal << आँख उन की नहीं दरीचा है कम नहीं है रंज-ओ-ग़म में ... >> आज भी सोचा बहुत और फिर रोया बहुत मैं कहीं भी था नहीं आइना देखा बहुत आदमी कमज़ोर था ज़ख़्म था गहरा बहुत था वो दरिया-दिल मगर आप ने माँगा बहुत ऐब भी छुप जाएँगे पास है पैसा बहुत क्या पता क्यों आप को देख कर देखा बहुत बस यही अफ़्सोस है कम लिखा भोगा बहुत Share on: