आँख उन की नहीं दरीचा है इस दरीचे में ख़ुद को देखा है दिल पे नश्तर चला के पूछते हैं हाल-ए-दिल अब जनाब कैसा है भूका सब को उठाता वो लेकिन भूका हरगिज़ नहीं सुलाता है दोस्त ही तज़्किरा नहीं करते दुश्मनों में भी मेरा चर्चा है वो ग़रीबों को दान क्या करता धर्म ईमान जिस का पैसा है मेरी फ़ितरत से वो जुदा निकला यूँ तो कहने को मेरा बेटा है महँगा अब तो यहाँ है पानी तक ख़ून-ए-इंसाँ बड़ा ही सस्ता है तू ने जिस को समझ लिया अपना तेरी नज़रों का सिर्फ़ धोका है बिस्तर-ए-मर्ग पर है बाप मगर बेटा ससुराल जा के बैठा है वो बड़ा दिल-जला ही होगा 'अयाज़' जूता बुश पर जो उस ने फेंका है