है मुकम्मल उन्ही से ज़ात मिरी मेरे बच्चे हैं काएनात मिरी मैं बस इंसानियत का क़ाइल हूँ पूछते क्या हो ज़ात-पात मिरी ज़ीस्त जीना मुहाल कर देगी याद आएगी बात बात मिरी उस ने भी मेरा हाथ छोड़ दिया जिस के हाथों में थी हयात मिरी उस ने बस मुस्कुरा के देखा था खिल उठी सारी काएनात मिरी किस क़दर बे-मिसाल सपना था चैन से कट गई है रात मिरी तेरे लहजे से हौसला पा कर गुनगुनाने लगी हयात मिरी जीत कर भी वो रो दिया 'अनवर' उस से देखी गई न मात मिरी