आज गुलशन में ये अफ़्वाह उड़ा दी जाए ज़िंदगी की सभी ख़ुशियों को हवा दी जाए बादा-ए-उन्स यूँ तक़्सीम करा दी जाए कोई बाक़ी न रहे सब को पिला दी जाए परचम अब ज़ुल्म का लहराते हैं हर सू ज़ालिम आप बतलाइए किस-किस को सज़ा दी जाए लोग जेबों में छुपे साँप लिए फिरते हैं क़र्या-क़र्या ये ख़बर सब को सुना दी जाए झुकने पाए न कभी अम्न-ओ-अमाँ का परचम उट्ठो नफ़रत की ये दीवार गिरा दी जाए हिन्द मेरा ही नहीं सब का ही प्यारा है वतन दिल में हर एक के ये बात बिठा दी जाए लफ़्ज़ आसान 'नियाज़ी' हैं तिरी ग़ज़लों में इन में अब 'मीर' की तस्वीर लगा दी जाए