ज़िंदगी हम तो समझते थे बसर हो जाएगी क्या ख़बर थी यूँ मुसलसल दर्द-ए-सर हो जाएगी आप अपनी सूरत-ए-ज़ेबा को शीशे में हुज़ूर ग़ौर से इतना भी न देखें नज़र हो जाएगी नुक्ता-चीनो बस ज़रा सा धन कमा लेने तो दो देखना फिर मेरी हर ख़ामी हुनर हो जाएगी हाँ यही होगा मिरा सच चीख़ता रह जाएगा आप की झूटी कहानी मो'तबर हो जाएगी आरज़ू पूरी नहीं होती यहाँ 'इमरान' तुम नोच लो कोंपल ही वर्ना ये शजर हो जाएगी