आज हम इक बात ऐसी कह गए जिस से वो तस्वीर बन कर रह गए वाए नाकामी कि सब अरमान-ए-दिल रफ़्ता रफ़्ता अश्क बन कर बह गए आबरू-ए-इश्क़ रखना थी हमें इस लिए ज़ुल्म-ओ-सितम सब सह गए हम भी कुछ हद से सिवा करते मगर क्या करें मजबूर हो कर रह गए मेरे अंदाज़-ए-जुनूँ पर भी 'ज़िया' कुछ न बोले मुस्कुरा कर रह गए