रौशनी करते दिल के दाग़ मिले रास्ते जब भी बे-चराग़ मिले हम ने चाहा कि फ़िक्र हो रौशन सब ने चाहा कि बस चराग़ मिले लोग हँसते हुए गए थे उधर और लौटे तो दाग़ दाग़ मिले वो मिला जब भी यूँ लगा जैसे बात करता कोई चराग़ मिले ख़ूब रौशन था वो मकाँ लेकिन कुछ अँधेरे पस-ए-चराग़ मिले सोचिए कौन कामयाब रहा दाग़ मुझ को उसे चराग़ मिले जाने क्या दौर आ गया 'ज़ेबा' रौशनी ढूँडते चराग़ मिले