आज जो इतनी सरगिरानी है इस में पोशीदा इक कहानी है क्या यक़ीं हो कि आज मानेगा पहले कब उस ने बात मानी है साया ढलने लगा है पेड़ों का पीरी अब हासिल-ए-जवानी है है रगों में तो ख़ून है लेकिन आँख में आए तो वो पानी है सुर्ख़ तन सुर्ख़-रू जो आया हूँ शहर वालों की मेहरबानी है तंज़ ही वो करे करे तो सही उस की तो ये भी मेहरबानी है मम्लिकत तेरी जिस्म-ओ-जाँ मेरे मेरा दिल तेरी राजधानी है किस की आमद है आज गुलशन में किस की ख़ातिर ये गुल-फ़िशानी है सर पे चढ़ आया है जो यूँ सूरज ये तनज़्ज़ुल की इक निशानी है है अटल सब के वास्ते 'ख़ावर' वो जो इक मर्ग-ए-ना-गहानी है