आज क्यों बे-हिजाब है रे तू किस के दिल का अज़ाब है रे तू देखने वाले तुझ को बोल उठे एक चढ़ता शबाब है रे तू देखता है तुझी को हर कोई जैसे ताज़ा गुलाब है रे तू क़त्ल क्या फिर किसी का करना है किस लिए बे-नक़ाब है रे तू तुझ में डूबा तो रह गया डूबा कितनी अच्छी शराब है रे तू उम्र-भर जो न हो सके हासिल एक ऐसा सराब है रे तू तुझ पे 'आदिल' है इस लिए शैदा मेरा इक इंतिख़ाब है रे तू