आँखों से हो रही है जो बरसात ही तो है मुझ पर किसी की चश्म-ए-इनायात ही तो है जो रफ़्ता-रफ़्ता उतरा है दिल के मकान में कोई नहीं वो सिर्फ़ तिरी ज़ात ही तो है सब पेश आ रहे हैं ख़ुलूस-ओ-वफ़ा के साथ ये ज़िंदगी की मेरी बड़ी बात ही तो है तोड़ा न हम ने सब्र का दामन इसी लिए लम्बी है ग़म की रात मगर रात ही तो है ये झील ये पहाड़ ये झरने ये आबशार जो कुछ है सब ख़ुदा की इनायात ही तो है बे-इख़्तियारी और ये बे-ताबियाँ 'हिरा' ये सब मोहब्बतों की शुरूआ'त ही तो है