आज मैं फिर से माहताब बनूँ तू मुझे पढ़ तिरी किताब बनूँ शबनमी रात की ख़ुमारी में तू मुझे पी तिरी शराब बनूँ पूछे कितने सवाल ये दुनिया उन की हर बात का जवाब बनूँ तू भी बन जाए गुल मिरा हमदम मैं भी महका हुआ शबाब बनूँ तू सहर लाने का तो कर वा'दा तेरी ख़ातिर मैं आफ़्ताब बनूँ