ज़ख़्म महकाएँ कोई तीर-ए-नज़र याद करें मंज़िल-ए-हिज्र पे क्या रंज-ए-सफ़र याद करें फिर पुकारे है कहीं महमिल-ए-लैला की जरस फिर कोई फ़स्ल-ए-जुनूँ चाक-ए-जिगर याद करें किस की ख़ुशबू से शब-ए-वा'दा हवा रक़्स में है क्यों मुनाजात-ए-वफ़ा कूचा-ओ-दर याद करें आओ कुछ देर को इस दुश्मन-ए-जाँ की ख़ातिर बे-रुख़ी ओढ़ के जीने का हुनर याद करें रात भटके तिरे गेसू की शिकन में जानाँ तेरे चेहरे को तिलिस्मात-ए-सहर याद करें रंग फूटें तो ख़द्द-ओ-ख़ाल तुम्हारे ढूँडें संग टूटें तो कोई दस्त-ए-हुनर याद करें खो गया दामन-ए-सहरा में 'रज़ी' किस का लहू ये बगूले किसे अब ख़ाक-ब-सर याद करें