आज यूँही हम से वो शिकवा गिला करने लगे लोग उस पर जाने क्या क्या तब्सिरा करने लगे वो मिरी मा'सूमियत के मो'तरिफ़ हो जाएँगे अपने दिल को संग से जो आइना करने लगे चाँद जब निकला तो जाने कौन याद आया हमें हम अचानक जाने किस का तज़्किरा करने लगे ऐब ख़ुद में दूसरों में ख़ूबियाँ आईं नज़र हम जो अपनी ज़िंदगी का तज्ज़िया करने लगे ढंग से चलना ज़मीं पर आज तक आया नहीं गो ख़ला में मुर्तसिम हम नक़्श-ए-पा करने लगे ख़ुद को इंसाँ के निशाने से बचाएँ किस तरह जानवर आदम-गज़ीदा मशवरा करने लगे दुश्मनों ने आज जो देखा मिरा हुस्न-ए-सुलूक वो 'वफ़ा' अपना निशाना ख़ुद ख़ता करने लगे