हर चंद कि ग़ालिब के तरफ़-दार बहुत हैं लेकिन ये मिरे दोस्त पुर-असरार बहुत हैं जमती हुई देखी है हथेली पे भी सरसों ये लोग ज़माने के तो फ़नकार बहुत हैं शर्मिंदा-ए-एहसास न हो गर्दिश-ए-दौराँ बर्बादी-ए-जाँ को तो मिरे यार बहुत हैं ये अक़्ल कहे राह-ए-मुलाक़ात नहीं है दिल हम से कहे इस बरस आसार बहुत हैं कुछ उन के लिए हाथ उठा और दुआ कर ‘सरताज’ तिरे इन दिनों बीमार बहुत हैं