दिल में पिन्हाँ ग़म-ए-मोहब्बत है मेरे पहलू में मेरी जन्नत है तर्क-ए-उल्फ़त के बाद समझा मैं उस की दूरी में कितनी क़ुर्बत है अपनी मंज़िल पे यूँ खड़ा हूँ मैं जैसे कोई मक़ाम-ए-हैरत है ज़िंदगी की दुआ न दो मुझ को ज़िंदगी मौत की अलामत है देखें कब दार तक रसाई हो हक़-बयानी हमारी फ़ितरत है हो अगर ज़ौक़-ए-बंदगी सादिक़ दिल भी इक मरकज़-ए-इबादत है मेरा मस्लक है दोस्ती 'शादाँ' हर बशर से मुझे मोहब्बत है