आख़िर वो अपने प्यार का इज़हार कर गए इंकार कर रहे थे जो इक़रार कर गए चोरी का डर नहीं रहा दिल के मकान में जब से खड़ी वफ़ा की वो दीवार कर गए उन से मिले न थे तो कभी हम ग़रीब थे दे कर मता-ए-इश्क़ वो ज़रदार कर गए आए जो दिल ख़रीदने बाज़ार-ए-इश्क़ में नीलाम अपना दिल सर-ए-बाज़ार कर गए सद-आफ़रीं कि सोए हुए हर जवान को 'जौहर' कलीमी ज़र्ब से बेदार कर गए