आख़िरश दूर हो ही जाते हैं मेरे दिल को जो लोग भाते हैं लौट कर मय-कदे से दीवाने तेरी आँखों में डूब जाते हैं हम से वा'दा भी इक नहीं टूटा लोग तो तारे तोड़ लाते हैं मुझ से कमज़ोर पर सितम कर के लोग क़िस्मत को आज़माते हैं मेरे हिस्से में कुछ नहीं 'सोहिल' मेरे हिस्से का लोग खाते हैं रोज़ दरिया में डाल कर माचिस अपने घर को मियाँ बचाते हैं हम भी रातों को जाग कर 'सोहिल' 'मीर' के शेर गुनगुनाते हैं