आँखों के ज़ाविए भी वहीं पर जड़े रहे कुछ दिल-फ़रेब लोग जहाँ पर खड़े रहे आया नहीं ख़याल किसी राहगीर को कुएँ में सात साल तो हम भी पड़े रहे वो कर रहे थे बातें सरासर ख़िलाफ़ जब जिर्गे में कुछ भी कहने से हम क्यों डरे रहे हम जानते हैं झेलीं हैं तुम ने अज़िय्यतें कुछ इम्तिहान हम पे भी अक्सर कड़े रहे हालाँकि धमकियाँ भी 'सहर' बार-हा मिलीं सच्चे थे सो ज़बान पे अपनी अड़े रहे