आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं फिर भी जो देखिए तो अब पहली सी दोस्ती नहीं रस्म-ए-वफ़ा का इल्तिज़ाम अहद-ए-वफ़ा का एहतिराम शेवा-ए-आशिक़ी तो है फ़ितरत-ए-आशिक़ी नहीं हम से शिकायतें बजा हम को भी है मगर गिला पहले से हम नहीं अगर पहले से आप भी नहीं बज़्म-ए-तरब में दोस्तो देख रहा हूँ मैं यही रक़्स में आदमी तो हैं रक़्स में ज़िंदगी नहीं मंज़िल-ओ-राह में कभी इतना तो फ़ासला न था राहबरो ख़ता-मुआफ़ ये कोई राहबरी नहीं इल्म-ओ-हुनर के फ़ैज़ से इल्म-ओ-हुनर के बावजूद महफ़िल-ए-ज़ीस्त में 'नज़ीर' रंग है रौशनी नहीं