आँखों में ख़्वाब रोज़ नई रहगुज़र का है मंज़िल के और आगे इरादा सफ़र का है दिल आया भी तो अपना उसी बे-नियाज़ पर ये भी क़ुसूर अपने ही ज़ौक़-ए-नज़र का है होश-ओ-ख़िरद गँवा दिया दीवाने हो गए सारा फ़ुसूँ ये आप की चश्म-ओ-नज़र का है सुलझी कोई गिरह तो बहुत हम उलझ गए क़िस्सा तमाम गेसू-ए-ता-बा-कमर का है ये रोज़ रोज़ कूचा-ए-जानाँ की गर्दिशें 'ख़ुर्शीद' हम-रिकाब किसी दर-ब-दर का है