आलाम का डर है जिन्हें आलाम से पहले कर देते हैं रौशन वो दिया शाम से पहले जो टूट गया रिश्ता-ए-उल्फ़त ही तो क्यों लोग लेते हैं तिरा नाम मेरे नाम से पहले मदहोश जो हो जाऊँ तो हैरत में न पड़ना आँखों से पिला देते हैं वो जाम से पहले है कोहकन-ओ-'क़ैस' की रूदाद मुझे याद अंजाम से वाक़िफ़ हूँ मैं अंजाम से पहले सय्याद से हुशियार रहें ताइर-ए-नौ-ख़ेज़ दाना भी बिछा देते हैं ये दाम से पहले मैं कूचा-ए-जानाँ में क़दम रखता हूँ जब भी लेता हूँ इजाज़त दिल-ए-नाकाम से पहले अच्छों से पता चलता है इंसाँ को बुरों का रावन का पता चल न सका राम से पहले 'रिज़वाँ' न था एहसास मुसावात-ए-बशर का इंसान को पैग़म्बर-ए-इस्लाम से पहले