नज़र उन की नज़र से मेरी टकराई तो क्या होगा क़यामत जिस को कहते हैं वो यूँ आई तो क्या होगा न आए होश में तेरे जो सौदाई तो क्या होगा अगर ली फ़स्ल-ए-गुल ने आ के अंगड़ाई तो क्या होगा घटा उठ कर नशेमन को न रास आई तो क्या होगा कहीं इन बदलियों में बर्क़ लहराई तो क्या होगा कभी है दश्त-पैमाई कभी है चाक-दामानी रही यूँही जुनूँ की कार-फ़रमाई तो क्या होगा है लाज़िम हाल में ऐ हम-सफ़ीरो फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल अभी तो फ़स्ल-ए-गुल है कल ख़िज़ाँ आई तो क्या होगा ब-ज़ाहिर बे-ग़रज़ सज्दे ब-बातिन ख़्वाहिश-ए-जन्नत पड़ी पल्ले जो इस सौदे में रुस्वाई तो क्या होगा तुम्हारे वा'दा-ए-फ़र्दा पे मैं हूँ मुतमइन लेकिन कहीं फिर लन-तरानी की सदा आई तो क्या होगा थका हारा मुसाफ़िर दूर-ए-मंज़िल और दिन थोड़ा अगर ग़ुर्बत में होगी शाम-ए-तन्हाई तो क्या होगा सुना तो दूँ उन्हें रूदाद-ए-ग़म अपनी 'रियाज़ी' मैं ख़ुदा-ना-ख़्वास्ता आँख उन की भर आई तो क्या होगा