बिछड़ गया हूँ मिरा कारवाँ नहीं मिलता कहीं किसी के क़दम का निशाँ नहीं मिलता ख़ला में डाल दिया शौक़-ए-इर्तिक़ा ने मुझे ज़मीं भी छूट गई आसमाँ नहीं मिलता हज़ारों राज़ छुपाए हों अपने सीने में किसे सुनाऊँ कोई राज़दाँ नहीं मिलता न जाने कौन चुरा ले गया ख़ुदा जाने बहुत दिनों से दिल-ए-ना-तवाँ नहीं मिलता तुम्हारे शहर में रहने के वास्ते हम को लहद तो मिलती है लेकिन मकाँ नहीं मिलता खड़ा है धूप में इक अजनबी उदास उदास हवेलियाँ हैं बहुत साएबाँ नहीं मिलता हमारे दौर के क़ातिल हैं कितने शो'बदा-गर अब आस्तीं पे लहू का निशाँ नहीं मिलता अजीब हाल है हम शायरान-ए-उर्दू का ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता वहाँ पे उम्र गुज़ारी है हम ने ऐ 'रिज़वाँ' कि साँस लेने का हक़ भी जहाँ नहीं मिलता