आलम तमाम सोया है हम जाग रहे हैं ख़ुशियों को नींद आई है ग़म जाग रहे हैं ईमान ओ दीन देखिए महव-ए-ख़िराम हैं कहते हैं आप दैर-ओ-हरम जाग रहे हैं सोया पड़ा है अम्न तशद्दुद है होश में सोए हैं या कि अहल-ए-क़लम जाग रहे हैं चेहरे से हुज़्न ओ ग़म की लकीरें तो मिट गईं लेकिन जिगर के दाग़ सनम जाग रहे हैं गुज़रा है कोई कारवाँ शायद अभी 'ज़िया' उट्ठी है धूल नक़्श-ए-क़दम जाग रहे हैं