बे-क़रारी है शब-ए-हिज्र है तन्हाई है आज की रात मिरी जान पे बन आई है बे-ख़बर है वो मिरे हाल से हरजाई है दिल है नादाँ उसी बे-दर्द का शैदाई है आज आँखों से मिरी अश्क हैं जारी पैहम आज हर चोट मिरे दिल की उभर आई है वहशत-ए-दिल का तक़ाज़ा है कि मिलना उन से हम ने सौ बार न मिलने की क़सम खाई है मेरी आवारा-मिज़ाजी के हैं चर्चे हर-सू हाए किस मोड़ पे उल्फ़त मुझे ले आई है कल वो कहते थे 'ज़िया' से हैं मरासिम गहरे अब वो कहते हैं कि हाँ उन से शनासाई है