आम है कूचा-ओ-बाज़ार में सरकार की बात अब सर-ए-राह भी होती है सर-ए-दार की बात हम जो करते हैं कहीं मिस्र के बाज़ार की बात लोग पा लेते हैं यूसुफ़ के ख़रीदार की बात मुद्दतों लब पे रही नर्गिस-ए-बीमार की बात कीजिए अहल-ए-चमन अब ख़लिश-ए-ख़ार की बात ग़ुंचे दिल-तंग हवा बंद नशेमन वीराँ बाइस-ए-मर्ग है मेरे लिए ग़म-ख़्वार की बात बू-ए-गुल ले के सबा कुंज-ए-क़फ़स तक पहुँची लाख पर्दों में भी फैली शब-ए-गुलज़ार की बात ज़िंदगी दर्द में डूबी हुई लय है 'राही' ऐसे आलम में किसे याद रहे प्यार की बात