आने दो अपने पास मुझ को करना है कुछ इल्तिमास मुझ को तेरे ये जौर कब सहूँ मैं गर इश्क़ का हो न पास मुझ को दो तिफ़्ल-मिज़ाज शीशा-दिल में किस तरह न हो हिरास मुझ को लगता है न घर में दिल न बाहर किस ने ये किया उदास मुझ को क्या हाल कहूँ कि देख उस को रहते ही नहीं हवास मुझ को ऐ निकहत-ए-गुल परी ही रह तू आना है उसी के पास मुझ को मुँह फेरा भी न उस तरफ़ से टुक होने दे रू-शनास मुझ को उठ जाऊँगा एक दिन ख़फ़ा हो यहाँ तक न करो उदास मुझ को गर हैं यही जौर उस के 'बेदार' बचने की नहीं है आस मुझ को