आँगन में छोड़ आए थे जो ग़ार देख लें किस हाल में है इन दिनों घर-बार देख लें जब आ गए हैं शहर-ए-तिलिस्मात के क़रीब क्या चाहती है नर्गिस-ए-बीमार देख लें हँसना-हँसाना छूटे हुए मुद्दतें हुईं बस थोड़ी दूर रह गई दीवार देख लें अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें मुश्किल है तेरा साथ निभाना तमाम उम्र बिकना है ना-गुज़ीर तो बाज़ार देख लें आशुफ़्तगी हमारी यहाँ लाई बार बार है क्या ज़रूर तुझ को भी हर बार देख लें