आँख किसी की गीली थी रात बड़ी दर्दीली थी प्रेम का जिस ने ज़ह्र पिया रंगत उस की नीली थी दफ़्न थे मेरे ख़्वाब जहाँ वो धरती चमकीली थी पत्थर गीत बने जिस से मेरी सोच सुरीली थी रात का दर्द लिए दिल में ऊषा कितनी पीली थी 'राज' की मस्ती क्या कहिए सब की आँख नशीली थी