आँख क्या ग़म में तिरे नम सी हुई जाती है ज़िंदगी शो'ला थी शबनम सी हुई जाती है बदले बदले वो नज़र आने लगे हैं जब से उन को पाने की तलब कम सी हुई जाती है क्या मोहब्बत है यही जब से तुझे देखा है इक ख़लिश सीने में पैहम सी हुई जाती है जब से इस दिल को ग़म-ए-यार मिला है यारो ज़िंदगी और भी मोहकम सी हुई जाती है आज फिर दिल ने लिया है तिरी यादों का असर आज फिर आँख मिरी नम सी हुई जाती है मेरे हाथों ने सिखाया था सँवरना जिस को आज वो ज़ुल्फ़ भी बरहम सी हुई जाती है जब से वो मेरे तसव्वुर में लगे हैं आने मेरी हर शाम शब-ए-ग़म सी हुई जाती है जब से उल्फ़त का असर होने लगा है उस पर उस की हालत भी 'ज़फ़र' हम सी हुई जाती है