बेवफ़ा से गला किया न गया लुत्फ़-ए-ग़म बे-मज़ा किया न गया लाख चाहा बने वो मेरा घर संग को आइना किया न गया उस ने ग़म ही दिए मोहब्बत में पास-ए-अहद-ए-वफ़ा किया न गया रात भर जागे इंतिज़ार किया उस से वा'दा वफ़ा किया न गया वो जुदा हम से हो गया लेकिन उस को दिल से जुदा किया न गया इश्क़ में ग़म सहे मगर फिर भी इश्क़ से दिल बुरा किया न गया बाद मुद्दत के जब मिले उस से कोई शिकवा गिला किया न गया बुत तराशे हज़ार आज़र ने बुत को ग़म-आश्ना किया न गया वा'ज़ क्या क्या दिए न वाइज़ ने रिंद को पारसा किया न गया जान दे दी किसी के ग़म में 'ज़फ़र' और इस के सिवा किया न गया