आँख से झड़ने लगे रुख़्सार को महका गए कुछ सितारे रतजगों की दस्तरस में आ गए बे-महल सी गुफ़्तुगू से रास्ते बुझने लगे मेरे हमराही मिरे अफ़्कार को भी खा गए जब्र कैसे रोक पाएगा नई ता'बीर को ख़्वाब जब आँखों की दीवारों से बाहर आ गए मैं तुम्हारे शहर से गुज़रा तो कुछ ऐसे लगा दिल उदासी आइना पत्थर बहम टकरा गए दर्द के पेड़ों पे बैठे जुगनूओं की ख़ैर हो बेबसी के दश्त में उम्मीद थामे आ गए चाँदनी और दश्त का कुछ तो त'अल्लुक़ है 'सफ़ी' बे-सबब यूँही नहीं पलकों पे मोती छा गए