आँखें बिछाए मेरे लिए दर कोई न था भटका हूँ यूँ कि जैसे मिरा घर कोई न था हर शख़्स चाहता था उजालों का पैरहन ख़्वाबों की इस फ़सील से बाहर कोई न था ख़ुद-ए'तिमादियाँ थीं मिरी जुस्तुजू के साथ माथे पे मेरे सब्त मुक़द्दर कोई न था अपनी ही सोच थी जो उन्हें कर गई अज़ीम वर्ना तो आसमानी पयम्बर कोई न था