मुझ पे कोई मेहरबाँ है आज-कल अब सुकून-ए-दिल कहाँ है आज-कल दिल में कोई मेहमाँ है आज-कल आरज़ू फिर से जवाँ है आज-कल बात अगली सी कहाँ है आज-कल अब तकल्लुफ़ दरमियाँ है आज-कल तुम नहीं तो लुत्फ़-ए-ऐश-ए-ज़ीस्त क्या ज़िंदगी बार-ए-गराँ है आज-कल जो नज़र थी दावत-ए-लुत्फ़-ओ-वफ़ा जाने क्यों तीर-ओ-कमाँ है आज कल आँसुओं को ज़ब्त कर भी लूँ मगर दिल तो मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल जिस जगह सज्दे किए थे इश्क़ ने हुस्न नम-दीदा वहाँ है आज-कल इल्तिफ़ात-ए-हुस्न-ओ-कैफ़-ए-वस्ल-ए-दोस्त एक भूली दास्ताँ है आज-कल बर्क़-ओ-बाराँ सब इसी के वास्ते क्या यही इक आशियाँ है आज-कल है फ़रिश्तों का पहुँचना भी मुहाल इक दिल-ए-नादाँ जहाँ है आज-कल राज़-ए-दिल मैं ने छुपाया भी मगर उन की नज़रों से अयाँ है आज-कल कर लें अब अहल-ए-चमन ख़ुद इंतिज़ाम मुश्किलों में बाग़बाँ है आज-कल इक दिल-ए-पुर-सोज़-ए-'मौज' और बहर-ए-इश्क़ आग पानी में रवाँ है आज-कल