तेरी नज़र के इशारों की बात कौन करे ज़मीं पे रह के सितारों की बात कौन करे हमें हैं रास थपेड़े ही तुंद मौजों के उदास उदास किनारों की बात कौन करे बढ़े न उन से कहीं और दिल की वीरानी ख़िज़ाँ के दिन हैं बहारों की बात कौन करे शुऊ'र-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र से है अब जहाँ रौशन फ़लक के चाँद सितारों की बात कौन करे अभी हैं उन के लबों पर मसर्रतें रक़्साँ ग़म-ए-हयात के मारों की बात कौन करे किसे है फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारगी नसीब 'ज़की' किसी के शोख़ नज़ारों की बात कौन करे