आँसू हमारे साथ बहाता रहा है चाँद बस रात भर सितम यही ढाता रहा है चाँद तारो गवाह तुम हो कि हम ने नहीं कहा आँगन हमारा ख़ुद ही सजाता रहा है चाँद आईना बन गया है कभी रात के समय बीते दिनों का अक्स दिखाता रहा है चाँद गर्दिश में रह के रात को नीले गगन तले जीने के ढंग हम को सिखाता रहा है चाँद अक्सर उदास रात में ख़ामोश रह के भी माज़ी की याद हम को दिलाता रहा है चाँद अफ़्साना-ए-हयात बहुत मुख़्तसर सही अफ़्साना-ए-हयात सुनाता रहा है चाँद अक्सर हम उस की ओर बहुत देखते रहे हम को तो बचपने से ही भाता रहा है चाँद माज़ी के वाक़िआ'त बहुत याद आए नाज़ यूँ अपनी चाँदनी से रुलाता रहा है चाँद शायद कोई तो बात नहीं कह सका हमें शायद कोई तो राज़ छुपाता रहा है चाँद