आओ कुछ गर्दिश-ए-तक़दीर का शिकवा कर लें जिस से महरूम रहे उस की तमन्ना कर लें जिस तरफ़ देखिए आईने ही आईने हैं अपनी सूरत का ब-सद-रंग तमाशा कर लें हुस्न मजबूर है ख़ुद जल्वा-नुमाई पे मगर मस्लहत ये है कि कुछ हम भी तक़ाज़ा कर लें नौनिहालान-ए-चमन तिश्ना न हो जाएँ कहीं आओ कुछ ख़ून-ए-जिगर और मुहय्या कर लें जेब-ओ-दामाँ में अभी फ़ासला कुछ बाक़ी है मिन्नतें आप की हम हज़रत-ए-ईसा कर लें गुल की रग रग में नज़र आएगा माली का लहू वा अगर अहल-ए-नज़र दीदा-ए-बीना कर लें बात 'अर्शी' की नज़र आती है गर उथली सी इम्तिहान इस का न क्यों क़िबला-ओ-काबा कर लें