अदाएँ हैं जो उस रश्क-ए-परी में न ढूँडे से मिलेंगी वो किसी में न देखी वो किसी की दुश्मनी में जो आफ़त है तुम्हारी दोस्ती में तग़ाफ़ुल किस क़दर हिम्मत-शिकन है नहीं है अब कोई अरमान जी में तड़पते हैं हज़ारों कुश्ता-ए-ग़म क़यामत है बपा तेरी गली में बनावट में वो कैफ़िय्यत कहाँ है मज़ा है जो तुम्हारी सादगी में वो कब सुनने लगे हैं शिकवा-ए-ग़म ख़फ़ा हो जाते हैं जो दिल-लगी में जुदा जब से हुए हो तुम मिरी जाँ कमी कुछ आ गई है ज़िंदगी में वही दिल को बचा सकता है ग़म से कभी जो ख़ुश नहीं होता ख़ुशी में बचाना हर बला से ऐ ख़ुदा तू तिरा ही आसरा है बे-कसी में जो दिल में बस रहा है कौन है वो किसे मालूम है ये बे-ख़ुदी में तुम्हीं को छीनती है मुझ से दुनिया मिले थे एक तुम ही ज़िंदगी में न भूलेगी ये सैर-ए-बाग़ 'हाजिर' किसी को साथ ले कर चाँदनी में